पड़हा समन्वय समिति, भारत द्वारा एक प्रेस वार्ता का आयोजन

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]

आज दिनांक 26 अप्रैल 2025 को पड़हा समन्वय समिति, भारत द्वारा एक प्रेस वार्ता का आयोजन प्रेस क्लब, राँची में समिति के अध्यक्ष श्री राणा प्रताप उराँव की अध्यक्षता में किया गया। इस अवसर पर निम्नलिखित महत्वपूर्ण मुद्दों को सार्वजनिक किया गया:

  1. आरक्षण नीति का उल्लंघन:
    राज्य गठन के समय से ही सरकारी विभागों, निकायों एवं निगमों में आरक्षण रोस्टर/रजिस्टर का समुचित अनुपालन नहीं किया जा रहा है। अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को न तो सीधी नियुक्ति में और न ही पदोन्नति में उचित प्रतिनिधित्व मिल पा रहा है। बैकलॉग पदों का सही रखरखाव नहीं होने के कारण आरक्षित वर्गों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।
  2. अनुबंध एवं आउटसोर्सिंग नियुक्तियों में अनियमितता:
    अनुबंध के माध्यम से अस्थायी रूप से दी जाने वाली नौकरियों को स्थायी स्वरूप देने का षड्यंत्र चल रहा है। इससे आरक्षण नीति का घोर उल्लंघन हो रहा है। आउटसोर्सिंग के माध्यम से शोषणकारी नियुक्तियाँ की जा रही हैं, जिसे माननीय मंत्री श्री मो० इरफान अंसारी ने भी स्वीकार किया है। समिति ने मांग की है कि आउटसोर्सिंग की इस व्यवस्था को अविलंब बंद किया जाए।
  3. TAC का संवैधानिक गठन एवं निष्क्रियता:
    अनुसूचित क्षेत्रों की रक्षा हेतु जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC) का गठन संवैधानिक प्रक्रिया से किया जाना चाहिए। वर्तमान में TAC की बैठक विगत 17 महीनों से नहीं हुई है। समिति ने TAC के पुनर्गठन और लंबित मामलों के शीघ्र निपटारे की मांग की है।
  4. राष्ट्रीयकृत बैंकों से ऋण सुविधा पर रोक:
    CNT, SPT एक्ट की भूमि को बंधक रखकर ऋण देने की व्यवस्था वर्ष 2005 से षड्यंत्रपूर्वक बंद कर दी गई है, जिससे आदिवासी समुदाय आर्थिक विकास से वंचित हो रहा है। सरकार द्वारा घोषित स्वरोजगार योजनाएँ भी पूंजी के अभाव में कागजों तक सीमित रह गई हैं। समिति ने बैंकों से पुनः ऋण सुविधा बहाल करने की मांग की है।
  5. पेसा कानून की नियमावली का अभाव:
    पेसा कानून 1996 के तहत अब तक नियमावली नहीं बनाई गई है, जिससे जल, जंगल, जमीन, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार के क्षेत्र में व्यापक अव्यवस्था फैल गई है। उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद नियमावली अब तक नहीं बनी है। समिति ने इसकी अविलंब अधिसूचना जारी करने की मांग की है।

भूमि अधिकार एवं SAR कोर्ट के मामले:
आदिवासी समुदाय को झारखंड के किसी भी क्षेत्र में सीमित सीमा तक भूमि खरीदने और बसने का अधिकार दिया जाना चाहिए। साथ ही SAR कोर्ट में लंबित भूमि वापसी के मामलों का शीघ्र निष्पादन सुनिश्चित किया जाए, ताकि दखल-देहानी भी समयबद्ध तरीके से पूरी हो सके।

समिति ने स्पष्ट किया कि उपरोक्त सभी बिंदुओं को विधायिका एवं कार्यपालिका के संज्ञान में लाया जा चुका है। अब प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ, मीडिया के माध्यम से जनता एवं सरकार के समक्ष इन समस्याओं को उठाते हुए यथाशीघ्र समाधान की अपेक्षा की जा रही है।

news100 livetv
Author: news100 livetv

और पढ़ें